यादें
खुशनसीबी
अनकहीसी
ख़ुशफहमी है या खुदकुशी इस दिल की
हसादें
कुछ रूलादें
कुछ पनह दें
बीते लम्हों को जीना क्यों है अब बाकी
सपनों का दरिया क्यूं बहता
हरदीन मैं रहाता बहेका
जीने को दिल क्यूं तरसे
सावन बरसे बरसे
सुखी अंखियों से
सावन बरसे बरसे
सुखी अंखियों से
सुखी अंखियों से….
मुस्कुरादें
कुछ सुना दें
हाथ बढ़ादें
कोसु खुदको मगर ज़िद्द है इस दिल की।
तू है दूर
खुश भी है तू
खफा मैं क्यूं
वक़िफ़ होजा अब तो राज़-ए-नरज़गी
एक रिश्ता टूटा है मुझसे
नींदों से टूटा या तुझसे
रंजीश में डुबे और कितने अरसे
सावन बरसे बरसे
सुखी अंखियों से
सावन बरसे बरसे
सुखी अंखियों से
सुखी अंखियों से….
© Danish Sheikh